हाई कोर्ट पटना से शिक्षकों को मिली बड़ी जीत , नीतीश सरकार को शिक्षकों को देना होगा अब यह सुविधा
हाई कोर्ट पटना से शिक्षकों को मिली बड़ी जीत , नीतीश सरकार को शिक्षकों को देना होगा अब यह सुविधा
पटना हाई कोर्ट ने 1980 के बाद बिहार के राजकीय विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति में बरती गई अनियमितताओं के संबंध में दायर अपील याचिकाओं को स्वीकृति देते हुए एकलपीठ द्वारा पारित उस निर्णय को पलट दिया जिसके तहत हाई कोर्ट ने सीबीआइ को मामले की जांच कर इसके निर्धारित लक्ष्य तक पहुंचाने का आदेश दिया गया था।
मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन एवं न्यायाधीश हरीश कुमार की खंडपीठ ने कामिनी कुमारी एवं अन्य द्वारा दायर अपील याचिका पर सुनवाई करते हुए पाया कि अपीलकर्ताओं के विरुद्ध प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं का उल्लंघन करते हुए मनमाने ढंग जांच की कार्यवाही शुरू की गई।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि भले ही सीबीआइ को कुछ अनियमितताएं मिलीं, लेकिन यह राज्य का काम है कि वह सावधानीपूर्वक जांच करे कि क्या ऐसी अनियमितताएं मौजूद थीं और यदि थीं, तो क्या याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई करना समीचीन था। खंडपीठ ने अपने आदेश यह भी जिक्र किया कि अपीलकर्ताओं के खिलाफ कोई शिकायत नहीं की गई है जो विभिन्न स्कूलों में शिक्षक थे। ऐसा एक भी उदाहरण नहीं बताया गया है जब उनकी सेवाएं असंतोषजनक पाई गई हों। उनमें से किसी पर भी, उनकी सेवानिवृत्ति से चार साल पहले, या उनकी कुल सेवा के दौरान कदाचार का आरोप नहीं है।
खंडपीठ ने अपीलकर्ताओं को सेवा से सेवानिवृत्त मानते हुए तत्काल प्रभाव से उनकी पेंशन बहाल करने का आदेश दिया। अदालत ने राज्य सरकार को चार महीने के भीतर याचिकाकर्ताओं को मार्च-2024 से पेंशन का भुगतान करने का आदेश दिया। कोर्ट उस अवधि के लिए भी बकाया राशि का भुगतान करने का आदेश दिया जब रिट याचिका में लगाए गए आदेशों के कारण उन्हें पेंशन से वंचित कर दिया गया था।
कोर्ट ने कहा कि यदि चार महीने के भीतर बकाया का भुगतान नहीं किया गया तो राज्य को पेंशन बंद होने की तारीख से 5 प्रतिशत की दर से ब्याज की अतिरिक्त देनदारी का सामना करना पड़ेगा। यदि ब्याज केवल बकाया राशि के वितरण में हुई देरी के कारण आकर्षित होता है, तो राज्य उन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने और उनसे ब्याज का हिस्सा वसूलने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र होगा जो देरी के लिए जिम्मेदार हैं।
हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को प्रत्येक अपीलकर्ता को उनके बकाया भुगतान के साथ पांच हजार का हर्जाना देने का भी निर्देश दिया है। अपीलकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता पुरुषोत्तम कुमार झा ने तर्क देते हुए कहा कि सीबीआइ रिपोर्ट पर भरोसा कर, जिसे कई वर्षों तक ठंडे बस्ते में रखा गया था और जिसके कारण कोई एफआइआर दर्ज नहीं हुई थी, पूरी तरह से गलत था। सेवानिवृत्ति के बाद शुरू की गई जांच में प्रक्रिया के नियमों का पालन नहीं किया गया।
क्या है मामला
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता पुरुषोत्तम कुमार झा ने कोर्ट को बताया कि यह मामला 1980 के बाद राजकीय विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति से संबंधित है। हाईकोर्ट के आदेश से इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई थी। याचिकाकर्ताओं ने सीबीआइ जांच को चुनौती दी थी, जिसके आधार पर कई शिक्षकों को पद से हटा दिया गया था और कई शिक्षकों के पेंशन को रोक दिया गया था। उन्होंने सीबीआइ की जांच को चुनौती देते हुए कहा था कि सीबीआई ने मनमाने तरीके से एक जैसे पदस्थापित शिक्षकों में से कुछ को नियमित एवं कुछ को अनियमित करार दे दिया था।